प्राक्कथन
प्रत्येक बच्चे के अधिगम और विकास के लिए कलाओं के महत्व के बारे में हमारे पास अथाह साहित्य उपलब्ध है। चाहे शोधकर्ता हों, शिक्षाशास्त्री हों या तंत्रिका-विज्ञानी, सभी इस बात से सहमत हैं कि बच्चे के विकास को तेज करने के लिए उसके मस्तिष्क को विभिन्न तरीकों से उद्दीपित करने की आवश्यकता होती है। विद्यमान शोध सुझाते हैं कि कोई भी कला-अनुभव मस्तिष्क और शरीर को पूर्ण रूप से कार्यशील बनाने में योगदान देता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसमें प्रत्येक बच्चे को बौद्धिक, सामाजिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से संलग्न करने की क्षमता होती है। प्रत्येक विद्यार्थी के अधिगम और विकास के लिए कला-अनुभवों के महत्व को समझते हुए, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा – 2005 कक्षा 10 तक कला शिक्षा को एक अनिवार्य विषय के रूप में सम्मिलित किए जाने की सिफारिश करती है। यह आगे विस्तार से बताती है कि विद्यालय-प्राधिकारियों को यह व्यवहार में सुनिश्चित करना चाहिए कि कलाओं को पाठ्यचर्या में महत्वपूर्ण स्थान दिया जाए, न कि उन्हें तथाकथित मनोरंजक या प्रतिष्ठा अर्जित करने वाली गतिविधियों मात्र तक सीमित कर दिया जाए। विद्यार्थियों द्वारा कलाओं का अध्ययन करने के लिए विद्यालय न केवल अनुमति दें, बल्कि उन्हें सक्रियता से प्रोत्साहित भी करें। प्राथमिक स्तर पर कलाओं के माध्यम से शिक्षा के महत्व पर ध्यान केंद्रित करते हुए और इसे स्पष्ट करते हुए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 कहती है- ‘स्व-अभिव्यक्ति, सृजनात्मकता, स्वतंत्रता की भावना और अंततः मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के माध्यम के रूप में कला के प्रति हमारा परिचय होना चाहिए।’
कला शिक्षा की सिफारिश एक पाठ्यचर्यात्मक क्षेत्र के रूप में किए जाने के बावजूद आमतौर पर यह देखने में आता है कि प्राथमिक स्तर पर स्थितियों में अधिक बदलाव नहीं हुआ है। कला शिक्षा के महत्व के विस्तार और क्षेत्र के बारे में शिक्षक कदाचित् अभी भी पूरी तरह तैयार नहीं हैं, प्रायः अनभिज्ञ हैं और अधिकतर अँधेरे में हैं। वे प्रायः इस प्रकार के प्रश्न पूछते हैं क्या कलाओं को पाठ्यचर्या के साथ एक पद्धति के रूप में समावेशित किया जाए या इसे पाठ्यचर्या के एक अलग क्षेत्र के रूप में होना चाहिए? कलाओं की शिक्षा सामान्य शिक्षकों द्वारा दी जाए या केवल कला-शिक्षकों द्वारा? क्या कला का मूल्यांकन किया जा सकता है? हम क्रियाकलापों के लिए सामग्री कैसे प्राप्त करें? यदि मैं स्वयं एक कलाकार नहीं हूँ तो मैं कलाओं की शिक्षा कैसे दे सकता हूँ? में विषयों को पढ़ाते हुए चार्ट, पेंटिंग, मॉडल आदि का उपयोग करता हूँ। क्या इसे ‘कला समेकित अधिगम’ के अंतर्गत रखा जा सकता है? आदि। यहाँ इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि यही शिक्षक अन्य विषयों, जैसे-भाषाएँ, गणित, पर्यावरण अध्ययन आदि को पढ़ाते हुए इस प्रकार के प्रश्नों को पूछने की आवश्यकता का अनुभव नहीं करते। संभवतः कला शिक्षा में उन्हें जिस बात की चिंता सर्वाधिक रहती है, वह है- स्वयं कला की एक विषय के रूप में जानकारी का अभावा कला शिक्षा की वह अवधारणा, जिसमें दृश्य और प्रदर्शन कलाओं की संपूर्ण श्रेणी सम्मिलित है, और कलाओं के माध्यम से सीखना, संभवतः उनमें से अधिकतर के लिए अपने-आप में नयी अवधारणा है।
प्राथमिक शिक्षकों के लिए कला शिक्षा संबंधी प्रशिक्षण पैकेज’ कलाओं के माध्यम से शिक्षण और कलाओं में शिक्षा को बढ़ावा देने का एक प्रयास है। इसमें इस स्तर विशेष (प्राथमिक स्तर) के शिक्षकों और अभिभावकों द्वारा उठाए जाने वाले अधिकतर प्रश्नों के उत्तर समाहित हैं। इसके प्रत्येक मॉड्यूल के ‘दूसरे भाग’ में वास्तविक कक्षाओं के उदाहरणों के माध्यम से अवधारणाओं, विधियों, सामग्री और मूल्यांकन को सुनियोजित तरीके से स्पष्ट किया गया है। प्रत्येक मॉड्यूल के ‘पहले भाग’ में दिए गए सुव्यवस्थित प्रशिक्षण-निर्देशों और अभ्यासों के माध्यम से यह पैकेज कला
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