दो शब्द..
प्रस्तुत पुस्तक, ‘शिक्षण अधिगम का मनोविज्ञान’ छात्रों के असीम अनुरोध का ही परिणाम है। वस्तुतः इससे पूर्व हमने इसी विषय पर दो अन्य पुस्तकें अंग्रेजी में लिखी हैं, जिनमें से एक अपने व्यापक रूप में Advanced Educational Psychology शीर्षक के अन्तर्गत लिखी है। फिर भी, न जाने क्यों यह जानते हुए भी कि इसी विषय पर एक तीसरी पुस्तक की रचना का औचित्य अधिक रुचिकर नहीं है, हमें अपने प्रिय छात्रों की हठधर्मिता के विनम्र वितान तले स्वयं को अनिच्छा को बिसारना ही पड़ा और पुस्तक को हिन्दी भाषा में सँवारने का मन बनाना ही पड़ा। वैसे तो यह पुस्तक चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के बी० एड० के पाठ्यक्रमानुसार ही लिखी गई है लेकिन हमें पूर्ण विश्वास है कि जिन प्रकरणों (Topics) को हमने पुस्तक में समाहित किया है वे अन्य विश्वविद्यालयों के शिक्षा एवं मनोविज्ञान जगत से जुड़े विद्यार्थियों के लिए भी उतने ही सार्थक सिद्ध होंगे। जितने कि वे अपनी सीमान्त परिधि में बँधकर विश्वविद्यालय विशेष के छात्रों के लिये। पुस्तक अंग्रेजी में हो या हिन्दी में, लेखक जब उसे लिखने बैठता है तो उसे अनजान पगडंडियों के बीच से गुजरते हुए ही मंज़िल तलाशनी होती है। यही भावना हमारी भी सम्बल बनी है।
पुस्तक में प्रत्ययों (Concepts) को समझाने की बारीकी से प्रयास किया गया है तथा यथास्थान उपयुक्त उदाहरणों के द्वारा भरपूर प्रयास किया गया है कि विद्यार्थी प्रत्येक तथ्य को भली-भांति समझ सकें। शोध कार्यों का यथास्थान समावेश पुस्तक की प्रमुख विशेषता है। प्रत्येक विचारधारा से सम्बन्धि ात विद्वान का नाम उसी स्थान पर दिया गया है जहाँ उस धारा की चर्चा हुई है।
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